Tuesday 10 September 2013

 
Pao rakh kar kabaro par
baste toh shaher khandaro ke hi hain
Phir bhi rakhte ho guman
Murdo ki iss basti mein
Ke chadha ke deewro par rang gulab ka
Na hain ab hawa main woh mausiki na hain fiza main mohabbat
Bana jo ab tajmahal in laasho par
Hoga koi jo aayega bikherne phool
Aur apne saath ke kuch pal is mzar par
Reh jayenge hum akele un khushnuma deewaro mein kaid
Aur na hoga koi tumhara bhi
Jo sarahe tumhare in khushnuma khandar ko
Ke gadh jaoge tum bhi apni laash ke saath
In khushnuma khandaro mein apni akeli yaadon ke saath


Wednesday 28 August 2013

मेरे ख़यालो की दिल्ली

जो हमने सुना था , था पढ़ा,
न पाया उसे आकर इस नई दिल्ली में,
सोचते थे आ बसेंगे ग़ालिबो मीर व मोमिनों , जौक की उस दिल्ली में,
पाई वोह शोखिया कुछ अंशो मे,
जो देखि तो बस बड़ी गाडिया,
और उस्से भी बड़ी इमारते,
और उस्से पाने की जद्दो जहद,
में भागता हर आदमि,
ईस नई दिल्ली मे,
किया  गर्क  जो बेडा ,
ईस  देहली और तमीज़े देहली का ईस नई दिल्ली ने। 
पाया हम ने काफी ,
कम अंशो में देहली को। 
ढूंढ ढूंढ कर ईस नई दिल्ली में 
अदबो शौख की उस देहली को। 
आँखों में लिए अश्को को चला मैं ,
सोच की ईस अदब की यह आखरी चंद साँसे न हो !
पर लिए दिल में उम्मीद हम आये ,
लौट कर उस देहली में ,
जहाँ महफ़िलो में ,
उड़ने वाली दाद की गूंज ,
शायरों, कवियों और दास्तांगो ,
की सजनेवाली महफिले ,
रहे उड़ती उस हवा में ,
दरख्तों में और लोगों के खून में ,
ईस अदब की खुशबु। 
लौट के आए ईस भीड़ ऐ नई दिल्ली में मेरे वह ,
किताबों , कहानियों और इतिहास की दिल्ली